Sunday, November 29, 2009

बेताल की साढ़े सत्ताईसवीं कथा

बेताल उवाच : हे कलियुगी मनुष्य जैसा कि तुझे पता ही होगा ..हर कथा के उपरान्त तुझे मेरे सवालों के ज़वाब देने होंगे वरना तेरा सर फट जायेगा


बेताल : इस दुनिया में एक देश है .. भारत गणराज्य .. जिसका एक राज्य है, बिहार .. वैसे तो गणराज्य होने की प्रथा प्राचीन बिहार से ही निकली थी.. पर जैसे प्राचीन काल में बिहार ने भारत वर्ष को गणराज्य की प्रथा दी वैसे ही आधुनिक युग में 'गन'राज्य की प्रथा भी.

इस महान 'गन'राज्य की प्रथा को कुछ लोग जिन्होंने चारा खाया था उनलोगों ने बहुत ही आगे तक बढाया और बिहार का नाम विश्व पटल पे लहराया ..

पर हरेक अच्छी प्रथा की तरह ये प्रथा भी बिहारी मनुष्यों को ज्यादा दिन तक रास नहीं आई और उन्होंने २००५ में इस प्रथा को बदलने के लिए नितीश कुमार नाम के एक तुच्छ प्राणी को अपने राज्य का मुख्यमंत्री बनवा दिया


श्री नितीश कुमार जी के आते ही बिहार में जो 'गन'राज्य स्थापित था वो फिर से उसी सड़ी गली और पुरातनपंथी गणराज्य व्यवस्था पे आने लगा जिसे देख कुछ परम बुद्धिजीवी लोगो को वो होने लगा जो स्वाभाविक था .. घुटन ..!!

अब घुटन भी क्यूँ ना हो .. 'गन'राज्य के चले जाने से चिकित्सा क्षेत्र में जो बिहार का परचम लहराता था वो उन्हें खतरे में दिखने लगा क्यूंकि 'गन'राज्य के समय लाशों की कोई कमी नहीं थी ..एक ढूंढो चार मिलते थे 'गन'राज्य की दया से... तो बच्चे उसपे अपने शुश्रुत संहिता के सारे ज्ञान आराम से सीखते थे .. पर गणराज्य में लाशों की घोर कमी हो गयी है और शुश्रुत संहिता अब मृतप्राय होने के कगार पे पहुँच गयी है .. हाय रे बद-इन्तेजामी ..!

'गन'राज्य के जाने से बिहार के कितने ही 'गन' कारखानों पे ताला लग लगा और लोग भूखमरी के कगार पे पहुँच गए .. हाय रे बेरोज़गारी .. किन नासपिटों ने ये गणराज्य लाया ... कितने भले और खुशहाल दिन थे 'गन'राज्य के ..!!

'गन'राज्य के जाते ही अब पुरुष अपनी नव विवाहिताओं को छोड़ दिल्ली पंजाब कमाने नहीं जाते जिसकी वज़ह से अब विरह के गीत नहीं गाये जाते .. 'गन'राज्य के के ज़माने में हर गाँव में हर गली हर कूचे में नव विवाहिताएं विरह का करुण क्रंदन करतीं थीं..

अब हर मोड़ पे विधवा विलाप नहीं होता क्यूंकि गणराज्य में गन रखना अब आम बात नहीं रही .. 'गन'राज्य के ज़माने में चलते फिरते कोई 'गन'धारी किसी भी जीवीत व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा से मिला के उसे मोक्ष की प्राप्ति करा देता था और उनकी धर्म पत्नियाँ विधवा विलाप के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी इसीलिए पूरे दिन विधवा विलाप करतीं थीं....

किडनैपिंग एवं "अडल्ट-नैपिंग " की वज़ह से मांओ का मार्मिक रुदन जो की 'गन'राज्य की ख़ास पहचान थी अब नहीं रही ...

हाय रे कितने अच्छे दिन थे .. विरह के गीत , विधवा विलाप , मांओ का मार्मिक रुदन .. सांस्कृतिक प्रतिभा अपने चरम पे हुआ करती थी 'गन'राज्य के ज़माने में ..!!!!

अब ये सारी प्रतिभाएं ना जाने कहा गुम हो गयीं ... बिहार की सांस्कृतिक प्रतिभा खोती जा रही है इस गणराज्य में ..


अब चूँकि गणराज्य व्यवस्था ५ साल तक बदली नहीं जा सकती थी तो इन परम बुद्धिजीवियों ने एक तरीका निकला जिससे की 'गन'राज्य वाली परम खुशहाली के दिन फिर से लाये जा सकें .. उन्होंने गणराज्य के दुष्प्रभावों का प्रचार प्रसार करना शुरू किया .. जैसे की लाशों की कमी से शुश्रुत संहिता के ज्ञान का अभाव, 'गन' कारखानों की बंदी से फैलने वाली बेरोज़गारी, विरह ना होने की वज़ह से विरह के गीतों का लुप्तप्राय होना इत्यादि इत्यादि ..! उनके इस प्रचार प्रसार से जो लोग बिहार में नहीं रहते थे उन्हें फिर से लगने लगा की 'गन'राज्य ही बेहतर था ..!

उन परम बुद्धिजीवियों ने अपने संकल्प को पूरा किया और अब बिहार में 'गन'राज्य आने की पूरी सम्भावना है ..!!!


तो हे कलियुगी मनुष्य अब मेरे सवाल का ज़वाब दे .. ऐसे महान बुद्धिजीवियों के होते हुए ओबामा जैसों को शांति का नोबल पुरस्कार मिलना किसकी बेइज्जती है .. ओबामा की .. नोबल पुरस्कार की ..या फिर ऐसे परम बुद्धिजीवियों की ?



हरिशंकर परसाई जी को शत शत नमन ..

6 comments:

रमा कान्त सिंह (बाबा बिहारी) November 29, 2009 at 2:14 PM  

गण और गन के बीच के विभेद को समझाने का उन्नत प्रयास

ss November 29, 2009 at 2:48 PM  

साफ़ सरल शब्दों में सटीक व्यंग्य।

Panchatantra Kahani November 29, 2009 at 3:03 PM  

bahut hi aacha laga. Ek safal vyangkar ki tarah bahut hi aacha tippani kiya hai buddhijivion par.

Paridhi Jha November 29, 2009 at 11:02 PM  

behatareen vyandgya.. behad sateek. shat shat abhinandan sir ji [:)]

Bhaskar G Vatsa June 20, 2010 at 12:47 AM  

..bahut hi badhiya,...bhaijee... betal ke time pe to talvaar hota tha...aap gan pakda diye....bahut badhiya vyang...

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