Wednesday, November 14, 2012

नागराज

ना जाने क्यूँ आज पैदल ही तफरीह करने का जी कर रहा था .. शहर को शहर के साथ महसूस करने का जी कर रहा था ..
जिन बड़ी गाड़ियों को देख के कभी आह भरता था, आज उन्ही में बैठने पे दम कुछ घुटता हुआ सा लगता है.
अपना लैपटॉप बैग कंधे पे डालते हुए पैदल ही निकल लिया ..

ड्राईवर पीछे से लगभग दौड़ता हुआ आया और बोला.. साहब गाडी अभी लाया ... मैंने कहा नहीं तुम गाडी लेके घर जाओ ..मैं आज पैदल आऊंगा
अजीब से शक्ल बनाते हुए ड्राईवर ने कहा .. अच्छा ...

वही शहर ..वही रास्ते फिर भी न जाने क्यूँ सब कुछ बदल सा गया है .. ४ सालों में समय जैसे पंख लगा के उड़ गया ...

अचानक से एक भीड़ पे नज़र पड़ी और पाँव खुद-ब -खुद उधर हो लिए ..पास जाके देखा तो एक सपेरा मजमा लगाये बैठा था .. लोग मज़े ले रहे थे और सपेरा उन अनजानी शक्लों में अपनी रोज़ी रोटी तलाश रहा था .. अचानक से उसने कहा.. अब नागराज की बारी .. 'नागराज', ये शब्द न जाने कैसे दिल के उन तारों को छेड़ गया जो न जाने किस आपाधापी में खो से गए हैं.. और मै सांप और सपेरे को भुला अपने अतीत में खो गया ...



चलो ना मूंगफली खाते हैं .. तुम्हारे साथ मूंगफली खाने का मज़ा ही अलग है उसने लगभग छेड़ते हुए मुझसे कहा

मैंने टालने के गरज की कहा ... रहने दो ना.. मूड नहीं है.. फ़ालतू में पैसे की बर्बादी ..

हाँ हाँ, मूंगफली ही तो दुनिया की सबसे महंगी चीज़ है.. कम से कम बहाने तो अच्छे बना लिया करो अगर कुछ और अच्छा नहीं कर सकते तो.. उसने फिर से मुझे छेड़ने की कोशिश की

हाँ मेरे से तो आजतक कुछ अच्छा हुआ ही नहीं ना तो बहाना कहाँ से अच्छा होगा ..

तुम भी ना ..जाने दो ..मै हारी तुम जीते ..अब खुश

हारा हुआ तो मैं हूँ ..

अभिनव .. फिर वही बात ..


अच्छा सुनो .. जाने दो ..

नहीं अब कह दो .. सारी दुनिया कुछ न कुछ कह ही रही ..लगे हाथों तुम भी सुना डालो... किश्तों पे बेईज्ज़त होने से अच्छा है एक ही बार हो लूँ

तुम तो हमेशा अर्थ का अनर्थ ही लगाते तो .. मैं तो बस तुमसे मुस्कुराने को कह रही थी .. तुम्हारी मुस्कराहट में अभी तक बच्चो सा भोलापन है.. बाकी तो न जाने कहा फेक आये हो..इतनी तल्खी रखते हो जबान पे की अगर शहद भी छू जाये तो करेले को शर्मिंदा कर दे.. वो तो एक मैं ही हूँ जो ज़नाब को झेलती हूँ

हाँ हाँ अब तो मैं झेलने वाली चीज़ हो गया हूँ .. क्यूँ झेलती हो .. छोड़ क्यूँ नहीं देतीं हमें .. तुम तो कम से कम सुखी हो जाओगी

बड़ी फिकर है तुम्हे मेरे सुखी होने की तो मेरी बात क्यूँ नहीं मान लेते .. बस मुँह से हमेशा ज़हर निकलते हो मेरे नागराज ..


हाहाहा .. नागराज .. काश नागराज ही बन सकता .. कम से कम कोई पहचान तो होती .. यहाँ तो खुद अपनी शक्ल अजनबी सी लगने लगी है

तुम हमेशा उल्टा क्यूँ सोचते हो... इतने बुरे भी हालात नहीं .. और कोशिश तो कर ही रहे हो ना.. किसी को हो न हो मुझे तो तुम पे भरोसा है ... मेरा नागराज एक दिन कुछ न कुछ तो करेगा ही .. कुछ न हुआ तो मैं बीन लेके निकल जाउंगी सड़कों पे .. मैं बीन बजाउंगी और तुम नाचना .. अपनी ज़िन्दगी इतने से कट जाएगी .. कम से कम दोनों पास तो होंगे :)

वह रे मेरी गिलहरी .. तुमने तो ज़माने का दस्तूर ही बदल दिया .. लोग नागिन को बीन पे नचाते हैं तुम तो नाग को ही पिटारे में डाल नचाने चली हो .. पिटोगी बंदरिया

एक पे कायम रहो .. या तो गिलहरी या बंदरिया ..वैसे मुझे दोनों पसंद है ..पर एक पे बात पक्की करो ..

हाहाहा... चलो कम से कम हँसे तो सही वरना कैसी रोनी सूरत बनाये रखते हो .. उदास नहीं होते .. अच्छा चलो गिलहरी को मूंगफली नहीं खिलाओगे .... और हाँ पैसे मैं दूँगी.. बदले में जरा लहरा के नाचना बीन की धुन पे :)
लोगों को लगना चाहिए सपेरन काम की पक्की है ..



एक चपत ने मुझे अपने अतीत से वर्तमान में ला पटका .. मुडा तो अनामिका खड़ी थी हमेशा की तरह मुस्कुराती हुई..

अच्छा तो ज़नाब यहाँ तमाशा देख रहे हैं और मैं इनके इंतज़ार में बैठी थी.. वो तो अच्छा हुआ ड्राईवर ने बता दिया की तुम आज सनके हुए हो .. और मुझे पता है तुम ऐसे मूड में कहा भटकते हो

चल गिलहरी, मूंगफली खाते हुए घर चलते हैं .. मैंने उसे लगभग गले लगाते हुए कहा .. बिना मेरे चेहरे की तरफ देखे हुए उसने कहा .. पहले आंसूं तो पोंछ लो .. नागराज :)

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Sunday, November 29, 2009

बेताल की साढ़े सत्ताईसवीं कथा

बेताल उवाच : हे कलियुगी मनुष्य जैसा कि तुझे पता ही होगा ..हर कथा के उपरान्त तुझे मेरे सवालों के ज़वाब देने होंगे वरना तेरा सर फट जायेगा


बेताल : इस दुनिया में एक देश है .. भारत गणराज्य .. जिसका एक राज्य है, बिहार .. वैसे तो गणराज्य होने की प्रथा प्राचीन बिहार से ही निकली थी.. पर जैसे प्राचीन काल में बिहार ने भारत वर्ष को गणराज्य की प्रथा दी वैसे ही आधुनिक युग में 'गन'राज्य की प्रथा भी.

इस महान 'गन'राज्य की प्रथा को कुछ लोग जिन्होंने चारा खाया था उनलोगों ने बहुत ही आगे तक बढाया और बिहार का नाम विश्व पटल पे लहराया ..

पर हरेक अच्छी प्रथा की तरह ये प्रथा भी बिहारी मनुष्यों को ज्यादा दिन तक रास नहीं आई और उन्होंने २००५ में इस प्रथा को बदलने के लिए नितीश कुमार नाम के एक तुच्छ प्राणी को अपने राज्य का मुख्यमंत्री बनवा दिया


श्री नितीश कुमार जी के आते ही बिहार में जो 'गन'राज्य स्थापित था वो फिर से उसी सड़ी गली और पुरातनपंथी गणराज्य व्यवस्था पे आने लगा जिसे देख कुछ परम बुद्धिजीवी लोगो को वो होने लगा जो स्वाभाविक था .. घुटन ..!!

अब घुटन भी क्यूँ ना हो .. 'गन'राज्य के चले जाने से चिकित्सा क्षेत्र में जो बिहार का परचम लहराता था वो उन्हें खतरे में दिखने लगा क्यूंकि 'गन'राज्य के समय लाशों की कोई कमी नहीं थी ..एक ढूंढो चार मिलते थे 'गन'राज्य की दया से... तो बच्चे उसपे अपने शुश्रुत संहिता के सारे ज्ञान आराम से सीखते थे .. पर गणराज्य में लाशों की घोर कमी हो गयी है और शुश्रुत संहिता अब मृतप्राय होने के कगार पे पहुँच गयी है .. हाय रे बद-इन्तेजामी ..!

'गन'राज्य के जाने से बिहार के कितने ही 'गन' कारखानों पे ताला लग लगा और लोग भूखमरी के कगार पे पहुँच गए .. हाय रे बेरोज़गारी .. किन नासपिटों ने ये गणराज्य लाया ... कितने भले और खुशहाल दिन थे 'गन'राज्य के ..!!

'गन'राज्य के जाते ही अब पुरुष अपनी नव विवाहिताओं को छोड़ दिल्ली पंजाब कमाने नहीं जाते जिसकी वज़ह से अब विरह के गीत नहीं गाये जाते .. 'गन'राज्य के के ज़माने में हर गाँव में हर गली हर कूचे में नव विवाहिताएं विरह का करुण क्रंदन करतीं थीं..

अब हर मोड़ पे विधवा विलाप नहीं होता क्यूंकि गणराज्य में गन रखना अब आम बात नहीं रही .. 'गन'राज्य के ज़माने में चलते फिरते कोई 'गन'धारी किसी भी जीवीत व्यक्ति की आत्मा को परमात्मा से मिला के उसे मोक्ष की प्राप्ति करा देता था और उनकी धर्म पत्नियाँ विधवा विलाप के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी इसीलिए पूरे दिन विधवा विलाप करतीं थीं....

किडनैपिंग एवं "अडल्ट-नैपिंग " की वज़ह से मांओ का मार्मिक रुदन जो की 'गन'राज्य की ख़ास पहचान थी अब नहीं रही ...

हाय रे कितने अच्छे दिन थे .. विरह के गीत , विधवा विलाप , मांओ का मार्मिक रुदन .. सांस्कृतिक प्रतिभा अपने चरम पे हुआ करती थी 'गन'राज्य के ज़माने में ..!!!!

अब ये सारी प्रतिभाएं ना जाने कहा गुम हो गयीं ... बिहार की सांस्कृतिक प्रतिभा खोती जा रही है इस गणराज्य में ..


अब चूँकि गणराज्य व्यवस्था ५ साल तक बदली नहीं जा सकती थी तो इन परम बुद्धिजीवियों ने एक तरीका निकला जिससे की 'गन'राज्य वाली परम खुशहाली के दिन फिर से लाये जा सकें .. उन्होंने गणराज्य के दुष्प्रभावों का प्रचार प्रसार करना शुरू किया .. जैसे की लाशों की कमी से शुश्रुत संहिता के ज्ञान का अभाव, 'गन' कारखानों की बंदी से फैलने वाली बेरोज़गारी, विरह ना होने की वज़ह से विरह के गीतों का लुप्तप्राय होना इत्यादि इत्यादि ..! उनके इस प्रचार प्रसार से जो लोग बिहार में नहीं रहते थे उन्हें फिर से लगने लगा की 'गन'राज्य ही बेहतर था ..!

उन परम बुद्धिजीवियों ने अपने संकल्प को पूरा किया और अब बिहार में 'गन'राज्य आने की पूरी सम्भावना है ..!!!


तो हे कलियुगी मनुष्य अब मेरे सवाल का ज़वाब दे .. ऐसे महान बुद्धिजीवियों के होते हुए ओबामा जैसों को शांति का नोबल पुरस्कार मिलना किसकी बेइज्जती है .. ओबामा की .. नोबल पुरस्कार की ..या फिर ऐसे परम बुद्धिजीवियों की ?



हरिशंकर परसाई जी को शत शत नमन ..

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Saturday, November 28, 2009

निठल्लेपन का दर्शन

अरसा हो गया हमे व्यस्त हुए , वैसे तो फुरसतियों को दुनिया निठल्ला, काहिल और ना जाने क्या क्या कहती है, पर वही नाशुक्री दुनिया भूल जाती है की दुनिया में जितने भी महान दार्शनिक अब तक हुए, वो सब निठल्ले ही थे, और उनके इसी तथाकथित स्थिति जिसे दुनिया निठल्लापन कहती है में से निकले हुए विचारों को दुनिया ने बाद में दर्शन कहा .!


खैर दुनिया की शिकायत फिर कभी ... आज हम आपको अपनी ही तरह के एक महान निठल्ले श्री बेताल जी और अपनी मुलाक़ात की कथा सुनायेंगे ...!

महान दार्शनिक बनने की अनिवार्य शर्त होती है दर दर भटकना .. तो हमने भी सोचा की क्यूँ ना भटक के इस शर्त को भी पूरा किया जाये ताकि हमारे और महान दार्शनिक होने की बीच की ये बाधा भी हट जाये

बहुतेरी जगहों पे भटक के हमने सोचा जीवीत प्राणियों के सानिध्य में तो बहुत रहे पर कोई दर्शन नहीं निकला, थोडा मृतकों के करीब आयें तो कुछ नया दर्शन निकले, यही सोच शमशान पहुचे .. ..खैर नए दर्शन का तो पता नहीं पर शमशान भूमि में श्री बेताल जी मिल गए .. निठल्ले से पेड़ पे लटके हुए, अपनी शाश्वत भाव भंगिमा के साथ .. हमने सोचा दर्शन ना तो ना सही पर इंसानियत के नाते उनसे हाल समाचार पूछ लिया जाये .. परन्तु हम जैसे ही उनके करीब हाल चाल पूछने पहुचे, वो अपनी शाश्वत आदत अनुसार, लटक लिए हमारी गर्दन पे..और लगे किस्सा सुनाने .. उसी का विवरण मैं आज आपलोगों को भी दे रहा हूँ ..


अथ: श्री बेताल कथा .. आरम्भ करता हूँ कलियुगी बेताल साढ़े पचीसी कथा




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